४६ ॥ श्री ब्रह्मा जी ॥ दोहा:- गुरु किरपा ते हरि मिलैं हरि किरपा ते मुक्ति । मुक्ती से भक्ती मिलै जानि लेहु यह युक्ति ॥१॥