६७ ॥ श्री महात्मा नित्यानन्द जी ॥
जारी........
तत्व यथारथ सब भरे जानहिं पुरुष महान ॥३२॥
पाठ करौ माला जपौ तन मन प्रेम लगाय ।
चित चंचल को रोकिये सबै काम बनि जाय ॥३३॥
कई मार्ग हरि मिलन के जानि लेय जो जौन ।
प्रेम बिना कछु ना मिलै सुनिये तौ मुख मौन ॥३४॥
मानुष को तन हरि दियो तिन्हैं दियो बिसराय ।
जानि परी जब जाइहौ तब को करी सहाय ॥३५॥
योगानन्द है नाम मम तन मन हरि की ओर ।
श्री गुरु किरपा करी आनँद हिये हिलोर ॥३६॥
दोहा:-
कुरुक्षेत्र रणभूमि का कछु चरित्र सुनि लेव ।
हम जो तुम से कहत हैं सो अब उर धरि लेव ॥१॥
श्री कृष्ण भगवान जी अर्जुन को समुझाय ।
पांच घरी में सब कह्यो आठ औ दश अध्याय ॥२॥
या में संशय को करै स्वयं आप सरकार ।
जो चाहैं सो करि सकैं कौन मिटावन हार ॥३॥
नैन मूँदि परलय करैं नैन खोलि रचि देंय ।
स्वयं सर्व गुण निधि प्रभू सांची हम कहि देंय ॥४॥
हरि औ हरि भक्तन चरित पार न पावै कोय ।
बकि बकि मरैं गँवार जन उमिरि देंय सब खोय ॥५॥
प्रेम से गीता जो पढ़ै होय ज्ञान वैराग ।
कृष्ण कृपा ते सुख मिलै होवै अति अनुराग ॥६॥
अर्थ न कोई करि सकै गीता हरि को रूप ।
पढ़ै सुनै जो प्रेम से देखै रूप अनूप ॥७॥
जिनकी कृपा कि थाह नहिं दीन होय जो कोय ।
श्री गुरु परताप ते आवागमन न होय ॥८॥
योगानन्द यह कहत हैं सुनि लीजै सब मेरि ।
श्री गुरु किरपा ते कहेन चरित हिये में हेरि ॥९॥
दस घंटा में भागवत व्यास लिख्यौ हरषाय ।
पढ़ै सुनै जो प्रेम से भव सागर तरि जाय ॥१०॥
देवि भागवत को लिख्यो बारह घंटा माहिं ।
सत्य वचन मम मानिये या में संशय नाहिं ॥११॥
सोलह घंटा में लिख्यो महाभार्त को फेरि ।
विघ्न कोई व्याप्यौ नहीं देखि लीन हिय हेरि ॥१२॥
ग्यारह घड़ी में लिखि दियो गीता ज्ञान महान ।
धन्य धन्य मुनि नाथ जी सुन्दर चतुर सुजान ॥१३॥
चौदह घरी में राम यश मुनि ने लिखो बनाय ।
वाल्मीकि जी नाम है सांची दीन बताय ॥१४॥
पढ़ै सुनै जो चरित यह तन मन अति हर्षाय ।
प्रेम करै ह्वै दीन तब राम धाम सो जाय ॥१५॥
तीनै दिन में वशिष्ट जी राम को दीन्हों ज्ञान ।
भक्तन संग लीला करत कैसी कृपानिधान ॥१६॥
वशिष्ट योग जेहि नाम है तत्व ज्ञान परधान ।
जानि लेय गुरु पास जो खुलि जाँय आँखी कान ॥१७॥
श्री गुरु गोविन्द सिंह जी वाणी बहुत ढुँढ़ाय ।
प्रेम सहित विधि पूर्वक लै कै दियो धराय ॥ १८॥
औ अपने कछु लिख धर्यो सुनिये चित्त लगाय ।
पढ़ै सुनै जो प्रेम से भवसागर तरि जाय ॥१९॥
एक दिवस वैठै रहे मन में कीन विचार ।
गुरु किरपा ते जगत में होवैं चरित प्रचार ॥२०॥
श्री गुरु नानक देव जी आय गये सुनि लेव।
और कोई जान्यो नहीं सुनिये या को भेव ॥२१॥
जारी........