७९ ॥ श्री सरयू महारानी जी ॥
दोहा:-
चित्त कि वृत्ति एकाग्र भइ, सुरति समानी शब्द ।
तीनि चारि औ पांच फिरि, भये पचीसों रद्द ॥१॥
शुन्य शिषर ऊपर चढ़ै, सो है पूरा संत ।
आवागमन नसाय तब, बनै रूप भगवन्त ॥२॥
दोहा:-
चित्त कि वृत्ति एकाग्र भइ, सुरति समानी शब्द ।
तीनि चारि औ पांच फिरि, भये पचीसों रद्द ॥१॥
शुन्य शिषर ऊपर चढ़ै, सो है पूरा संत ।
आवागमन नसाय तब, बनै रूप भगवन्त ॥२॥