११९ ॥ श्री स्वामी नरहरियानन्द जी ॥ दोहा:- गुरू हमारे धन्य हैं हरि सन्मुख करि दीन । तन मन ते श्री गुरू चरन रह्यों सदा लवलीन ॥१॥