१५८ ॥ श्री गिरिराज गोवर्ध्दन जी ॥
गजल:-
बताऊँ भजन का मारग मेरी अब बात को सुनिये ॥१॥
ध्यान अपने गुरू जी का नैनो को बन्द कर करिये ॥२॥
बैठि के उन्मुनी से तब सुरति को शब्द पर धरिये ॥३॥
खुलैगा नाम रंकारा सदा आनन्द से रहिये ॥४॥
सदा सन्मुख तेरे स्वामी हमारी बात चित धरिये ॥५॥
सत्य सतयुग का यह मारग सदा साकेत में वसिये ॥६॥
दोहा:-
राजयोग या को कहत सब योगन का मूल ।
राम कृपानिधि द्रवहिं तब मिलैं गुरू अनुकूल ॥१॥
भरम छूटि तब जाय सब रहै न तन मन शूल ।
सतगुरू जब किरपा करी राम भये अनुकूल ॥२॥