१६० ॥ श्री द्रौपदी जी ॥
गज़ल:-
करो मति गम भजो हर दम बसे हर शै में बनवारी ॥१॥
नाम परताप से देखो हमारी बढ़ गई सारी ॥२॥
लगै जब नाम से सूरति मिलै आनन्द अति भारी ॥३॥
सदा सन्मुख रहैं मोहन विमल मुरली कि धुनि प्यारी ॥४॥
गज़ल:-
करो मति गम भजो हर दम बसे हर शै में बनवारी ॥१॥
नाम परताप से देखो हमारी बढ़ गई सारी ॥२॥
लगै जब नाम से सूरति मिलै आनन्द अति भारी ॥३॥
सदा सन्मुख रहैं मोहन विमल मुरली कि धुनि प्यारी ॥४॥