१८३ ॥ श्री गर्ग जी ॥
दोहा:-
अनेक जन्म जन्मौं मरौं, गुरु बिन पैहौं नाहिं ।
अंजुलि जल परमान यह, नर तन व्यर्थ में जाहिं ॥१॥
सांचा गुरू कोई मिलै, सो जानै यह भेद ।
ढूंढ़ि लेव तुम दीन ह्वै, मेटि देव सब खेद ॥२॥
दोहा:-
अनेक जन्म जन्मौं मरौं, गुरु बिन पैहौं नाहिं ।
अंजुलि जल परमान यह, नर तन व्यर्थ में जाहिं ॥१॥
सांचा गुरू कोई मिलै, सो जानै यह भेद ।
ढूंढ़ि लेव तुम दीन ह्वै, मेटि देव सब खेद ॥२॥