२३३ ॥ श्री राजा पृथु जी ॥
दोहा:-
राम नाम सुमिरन करौ, जाय न कोई साथ ।
अन्त समय पछिताइहौ, मलि मलि रवाली हाथ ॥१॥
जो करिहौ सो पाइहौ, आगे परै दिखाय ।
बिना नाम के जपे कछु, सुक्ख न मिलि है भाय ॥२॥
तन मन ते सुमिरन करै और करै उपकार ।
पृथु के वचन को मानिये, तब होवै भव पार ॥३॥