२४१ ॥ श्री महात्मा दयालदास जी ॥
भजन:-
शब्द तो खुलिगा सतगुरु मेरा हरदम धुनि होती एकतार ॥१॥
रोम रोम ते नाम की धुनि हो रा रा कार पुकार ॥२॥
अनहद बाजा हरदम बाजै, किंगरी वेन सितार ॥३॥
श्याम सलोनी मूरति सूरति उपमा अमित अपार ॥४॥
सन्मुख नैनन में नैना अब जूटे हरदम रहत हमार ॥५॥
शून्य भवन में लय जब होती सुधि बुधि नहीं विचार ॥६॥
जब परकाश यकायक होता अमित भानु उजियार ॥७॥
सात कमल षट चक्र ठीक भे उठै सुगन्ध अपार ॥८॥
पांच तत्व में पांच रंग जो दर्शैं अजब बहार ॥९॥
पांचौं मुद्रा जानि लीन अब छूटा भरम का मार ॥१०॥
मीन पपील मार्ग के आगे विहंग मार्ग लियो धार ॥११॥
पांचौ चोर शान्त ह्वै बैठे द्वैत भयो जरि छार ॥१२॥
माया पति माया को खींच्यौ काह करै संसार ॥१३॥
बारह वर्ष की आयू हती जब सुनिये वचन हमार ॥१४॥
जड़ समाधि को हम सिखलीनी आयू बढ़ी हमार ॥१५॥
खास इटावा ग्राम हमारा सत्य कहौं सरकार ॥१६॥
आठ सै वरस भये अब हमको मिल्यौ नहीं सुखसार ॥१७॥
अब हम जानी अपने मन में जड़ समाधि बेकार ॥१८॥
राज योग अति सुलभ योग है सब योगन को सार ॥१९॥
बिना समय नहिं प्राप्त होत है कितनौ करै विचार ॥२०॥
समय आयगो देर न लागी धन्य धन्य करतार ॥२१॥
अब मोहिं ढृढ़ विश्वास भयो मन समय केर बलिहार ॥२२॥
बिना समय कछु ह्वै है नाहीं धीरज मन में धार ॥२३॥
राम कृपा ते समय आइहै हो सब कार्य सम्हार ॥२४॥
दास दयाल कहैं कर जोरे क्षत्रि वंश अवतार ॥२५॥
धनि धनि अवध पुरी धनि सरयू माता तुम हो बड़ी उदार ॥२६॥
जियत में मुक्ति भई अब मेरी था मति मन्द गँवार ॥२७॥
भक्ति स्वरूप मिला अब हमको तन मन जै जै कार ॥२८॥
सतगुरु ते मिलि सुमिरन करिये समय न बारम्बार ॥२९॥
यह तो देह सुरन को दुर्लभ निसि दिन करैं विचार ॥३०॥
आवागमन का खेल मिटै तब होवै बेड़ा पार ॥३१॥
घट के पट मम खोल्यौ सतगुरु चरण कमल बलिहार ॥३२॥