२१ ॥ श्री सोहराव जी ॥
ग़ज़ल:-
एक दफ़ा देखा है जिसने उस संवलिया यार को।
चैन फिर पड़ती नहीं देखे बिना दिलदार को।
छवि अनोखी कर में मुरली संग राधे प्यार को।
तिरछी चितवन मन हरन मुसक्यान पग झंकार को।
साकार वह निराकार वह करतार जगदाधार को।५।
सरदार सब से न्यार सब हित कार ज्ञानगार को।
लीला अपरम्पार जिनकी कौन पावै पार को।
सोहराव तन मन दे चुका उस सांवले सरकार को।८।
शेर:-
प्रेम बिन होता नहीं दरशन सुनो सरकार का।
प्रेम वह सोहराव है, जो लगा गया एक तार का॥
ठुमरी:-
भजो भजो मन श्याम श्याम श्याम।
तेरा बनि जावै सब काम काम काम।
निपट निडर हरि को बिसराये।
जाय परै यम धाम धाम।
सोहराव ज़िकर कर फिकिर मिटै।
मुरशिद से जानि के नाम नाम।६।
शेर:-
हर जगह सोहराव वह है देखिये करि प्रेम जी।
प्रेम के बस में हैं मोहन हैं नहीं वह नेम जी॥