२५ ॥ श्री हरखू जी ॥
जारी........
अष्ट सिध्दि कहौ नव निध्द कहौ अन्नपूरना कहौ हर्षाई जी।१४५।
सावित्री कहौ गायत्री कहौ इन्द्राणी कहौ हर्षाई जी।
कला कहौ महा कला कहौ सब का भला कहौ हर्षाई जी।
चतुरानन कहौ पंचानन कहौ औ षड़ानन कहौ हर्षाई जी।
वरुण कहौ औ कुबेर कहौ दिगपाल कहौ हर्षाई जी।
अश्वनी कहौ धन्वन्तरि कहौ लुकमान कहौ हर्षाई जी।१५०।
आशीर्वाद कहौ एवमस्तु कहौ वरंब्रूहि कहौ हर्षाई जी।
अल्ला कहौ बिसमिल्ला कहौ अबदुल्ला कहौ हर्षाई जी।
खोदा कहौ सब से जुदा कहौ सब में मुदा कहौ हर्षाई जी।
नबी कहौ चाहै रबी कहौ चाहै सबी कहौ हर्षाई जी।
मुहम्मद कहौ चाहै ईसा कहौ चाहै नानक कहौ हर्षाई जी।१५५।
सब नाम कहौ सब रूप कहौ निष्काम कहौ हर्षाई जी।
सब में आप कहौ सब आप कहौ धनि आप कहौ हर्षाई जी।
रोजा भी रहौ नेवाज़ करौ कुरान पढ़ौ हर्षाई जी।
तस्वी फेरो सदा बांग टेरो सदा रहम हेरो हर्षाई जी।
हरदम याद करो दोज़ख़ न परो होवै भिश्त खरो हर्षाई जी।१६०।
माला जाप करो मुख से नाम ररौ चाहै पाठ करौ हर्षाई जी।
गुणगान करौ स्वर तान भरौ नहिं मान करौ हर्षाई जी।
ठाकुर सेवा करो नित नेम करौ तन मन प्रेम करौ हर्षाई जी।
जब भोग धरौ राम मन्त्र पढ़ौ फिर ध्यान करौ हर्षाई जी।
राम विष्णु सटे संग कृष्ण छटे सब खात डटे हर्षाई जी।१६५।
जब खाय चुकैं जल पाय चुकैं सुख पाय चुकैं हर्षाई जी।
तब विनय करौ हरि पाप हरौ मोहिं कीजै खरो हर्षाई जी
हर्खू मूर्ख कहै यह गारी गहै औ सब की सहै हर्षाई जी।
तब दरसैं होकर परसैं हो हिय हरसै हो हर्षाई जी।१६९।
यह नेम से हो नहिं टेम से हो बस प्रेम से हो हर्षाई जी।१७०।
दोहा:-
राम विष्णु औ कृष्णजी, सुर मुनि दर्शन देंय।
नित प्रति एते नाम जे, तन मन प्रेम से लेंय॥
हरखू दुविधा छोड़ि कै, भजन करै जो कोय।
अँधरा जिमि लकुटी गहै, लेय बाद को टोय॥
हरखू हरि सुमिरन बिना, कोइ न आवै काम।
मातु पिता भ्राता बहिन, दुहिता सुत धन धाम॥
सब जहँ के तहँ ही रहैं, जब यम पकरैं आय।
हरखू तब तुम का करौ, कौन बचावै धाय॥
सतगुरु से उपदेश लै, नाम भजौ सुख पाव।
हरखू हरि किरपा करैं, हरि के पासै जाव।५।
हरखू हरि के भजन ते, हटैं सबै तन पाप।
दैहिक दैविक भौतिकहु, ऐसा नाम प्रताप।६।