७५ ॥ श्री पद्मावती जी॥
पद:-
नाचत झुकि झूमि झूमि ताकत फिरि घूमि घूमि राधे मुख चूमि चूमि यशुमति नन्द भैया।
मोर मुकुट लसत भाल कानन कुण्डल बिशाल गले सोहैं मोती माल बंशी के बजैय्या।
केशरि को तिलक सोहै सुर मुनि नर नारि मोहैं निरखि बरनि सकत को है अनुपम छबि कन्हैया।
पीत फेटा कमर बांधे घँघुरू दोउ पगन राजै बसन शुभग अंग छाजै
सब ठौर के बसैया।
बाजत सब साज साथ नाचत धरि माथ हाथ गावत सुनि सब सनाथ
ताल स्वर मिलैया।५।
सखा सखी ग्वाल बाल फँसिगे सब प्रेम जाल जय जय त्रिभुवन भुवाल नृत्य के करैया।
सुर मुनि नर नारी जौन सखा सखी वृज के भौन ह्वै गे सब मौन पौन सब को कृत कृत्य करत रूप बहु धरैया।
पद्मावती कहत आय दर्शन दीजै कन्हाय लीजै चरनन लगाय दीनन की सुनैया।८।