७७ ॥ श्री घण्टा कर्ण जी॥
दोहा:-
शंकर की भक्ती किहेंव तन मन प्रेम लगाय।
नाम दूसरा नहिं सुन्यौं सत्य मानिये भाय।१।
कानन घण्टा बांधि कै सोच्यों यही उपाय।
नाम और क जो कहैं घण्टा देंव बजाय।२।
घण्टा के बजतै तुरत शब्द जात विलगाय।
शंकर प्रगटे औ कह्यौ बर मांगौ हर्षाय।३।
चौपाई:-
शंकर सै मैं कह्यौं सुनाई। दीजै मुक्ति मोंहि सुखदाई॥
दोहा:-
कह्यौ शम्भु घण्टाकरण, जाहु बद्रिका धाम।
श्री कृष्ण भगवान ते, बनै तुम्हारो काम॥
चौपाई:-
रूप रंग हर दीन बताई। तब हम जाय के खोज लगाई॥
दोहा:-
भेट बड़ेन को चाहिये मन में कीन बिचार।
सब से उत्तम कौन है सो लै धरौं अगार॥
चौपाई:-
ब्राह्मण एक जात लखि पायौं। निरखत ही मम मन हरषायौ।१।
सुर सब उत्तम जाहि बतावैं। या से उत्तम हम कँह पावैं।२।
दोहा:-
दौरि के ताको पकरि कै तुरतै लीन्ह्यौं मारि।
ऊपर का धर तूरि कै, लै कै चल्यों सम्हारि॥
चौपाई:-
हे मन मोहन कृष्ण मुरारी। मुरली धर गिरधर बनवारी।१।
करत कीर्तन पहुँच्यों तहवां। बैठे गुफा में मोहन जहवां।२।
आगे भेंट धरयौं जस जाई। श्याम घूमि बैठे मुसक्याई।३।
दोहा:-
तब हम ताहि उठायकै मूंह के समुहे कीन।
कह्यों कृपानिधि विप्र तन पावन जानि के लीन॥
चौपाई:-
नीचे का तो वहीं परा है। अब ही नेकौ नहीं सरा है।१।
हुकुम होय तो लावौं जाई। कह्यौ कृष्ण लै आओ धाई।२।
दोहा:-
तब हम ताको लाय कै धरेन अगारी आय।
धड़ से धड़ को जोरि हरि, तुरतै दीन जिआय।१।
बिप्र आपने धाम को फेरि चल्यो हर्षाय।
यह कौतुक हरि ने कियो जय जय जय यदुराय।२।
चौपाई:-
तब हम से हंसि कह्यो कन्हाई। कौन कार्य्य हित आयो भाई।१।
तब हम हाल अपन बतलावा। शंकर आप के पास पठावा।२।
कह्यों कृष्ण शंकर हैं हम में। हम तो है शंकर के बश में।३।
दोहा:-
जौन काम हित तुमहिं शिव यहँ पर दीन पठाय।
सो अब हीं मैं देत हौं लीजै मन हर्षाय।१।
उठि कै श्याम खड़े भये दीन्हेव हाथ उठाय।
सिंहासन असमान से उतरयो तहँ पर आय।२।
चौपाई:-
चारि पारषद ऐसे सोहैं। जिनको निरखत ही मन मोहैं।
कह्यो कृष्ण तेहि दिब्य बनावों। यह शरीर अब ही बिलगावों।
तब तुम या पर बैठि के भाई। चलिये बैकुण्ठे हरखाई।
तब मैं कह्यों सुनो भगवाना। मै परिवार के करो रवाना।
जाउँ अकेल नहीं मैं स्वामी। आपु कृपालु सुरन में नामी।
तब घनश्याम कह्यों हरषाई। मै परिवार के देउँ पठाई।६।
दोहा:-
यकइस सहस बिमान हरि तुरतै लीन मँगाय।
सब परिवार हमार तँह लीन्हैउ फेरि बोलाय॥
जारी........