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८४ ॥ श्री सुनीति जी ॥


कजरी:-

मानुष का तन पाय नाम से नेह लगाना है।

नाम खुलै हरि सन्मुख हर दम दरशन पाना है।

छूट गयो मल भार अमल अनुभव उपजाना है।

कर्म शुभा शुभ जरे ब्रह्म अग्नी के ज्ञाना है।

सत रज तम को बन्धन टूट्यो फेरि न आना है।५।

रूप प्रकाश प्रभू का सब में क्या दर्शाना है।

तन मन प्रेम से सुमिरन करिये तभी ठिकाना है।

दुख सुख को सम मानिके सतगुरु करि तरि जाना है।८।