साईट में खोजें

८९ ॥ श्री मुर्वी जी ॥


कजरी:-

मानुष का तन पाय हाय क्यों बने अनारी हो।

सतगुरु से लै राम नाम को जपौ सम्हारी हो।

ऐसा समय फेरि नहिं मिलिहै लेहु बिचारी हो।

यह तो देह सुरन को दुर्लभ मंगल कारी हो।

राम नाम जप खुलै अखण्डित धुनि क्या जारी हो।५।

राम सिया की झांकी सन्मुख हर दम प्यारी हो।

पाचौं चोर अजा सत रज तम मन गो हारी हो।

मुर्वी कहैं चलो साकेतै तहँ सुख भारी हो।८।


पद:-

क्या श्याम श्याम हैं श्याम श्याम मन मोहैं।

केशरि को तिलक बिशाल भाल में सोहैं।

कानन में कुण्डल शिर पर मुकुट बिराजै।

हीरा गज मुक्तन माल लाल मणि राजै।

क्या पीत बसन छबि अंग पगन दोउ नूपुर।५।

वंशी की मधुरी तान मोह जांय सब सुर।

हैं सुघर सुहावन बाम भाग में राधा।

लेवै उनका जो नाम हरै सब बाधा।

जो चाहै हर दम दरश बचन मम मानै।

लै सतगुरु से उपदेश नाम धुनि जानै।१०।

सुर मुनि नित देवैं दर्श संघ बतलावैं।

नाना बिधि लीला करैं मधुर स्वर गावैं।

है राज योग यह सुरति शब्द को ख्याला।

अनहद बाजैं क्या मधुर तान स्वर आला।

मुर्वी के प्राण के प्राण राम गिरधारी।

सुर मुनि जिनका करि भजन रहे एकतारी।१६।