९१ ॥ श्री रति जी ॥
दोहा:-
तन मन भोग बिलास में रहै आठहू याम।
पती हमारे काम हैं, रती हमारो नाम।१।
जे हरि नाम में मगन हैं तिनको करूँ प्रणाम।
नाहीं तो मैं पती से कहि चढ़ि देऊँ लगाम।२।
दोहा:-
तन मन भोग बिलास में रहै आठहू याम।
पती हमारे काम हैं, रती हमारो नाम।१।
जे हरि नाम में मगन हैं तिनको करूँ प्रणाम।
नाहीं तो मैं पती से कहि चढ़ि देऊँ लगाम।२।