९३ ॥ श्री रोहिणी जी ॥
चौपाई:-
दशरथ कौशिल्या नन्दन। भये आय राम रघुनन्दन।१।
बसुदेव देवकी नन्दन। भये मथुरा में ब्रज चन्दन।२।
नन्द यशुमति के अंगन। भरि दीन मोद करि क्रन्दन।३।
मुर्बी के गर्भ में आये। प्रगटै जग यश फैलाये।४।
दोहा:-
गुरु राघवानन्द जी तारक मंत्र सुनाय।
आशिष इच्छा मरन की दीन हिये हर्षाय।२।
चौपाई:-
रामानन्द नाम धरि दीन्हा। सर्व कला निधि छण में कीन्हा।
जो जौन कार्य्य हित आयो। सो बिमुख गयो नहि पायो।
फिर शची के गर्भ में आकर। प्रगटे करुणा सुख सागर।
जिन सर्गुण यश नहि गायो। तिनको हंसि नाच नचायो।
चैतन्य गौराङ्ग निताई। कहवाये यहं पर आई।
रोहिणी कहैं समुझाई। सुमिरौ सब काम बिहाई।६।