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१०७ ॥ श्री सेन भक्त जी ॥


पद:-

उत्पति पालन परलय औ लय रंकार के अन्तरगति सब है।

सन्मुख सिय राम की झांकी मै धुनि जारी हर दम रहती है।

लेटे बैठे चलते निर्भय आसान मार्ग यह ऐसा है।

शुभ अशुभ कर्म जरि ह्वै गे क्षय सब सुर मुनि दरशन देते हैं।

मन जस मानै बैठै वैसै नहिं आसन की कोई बिधि है।५।

निर्भय निर्बैर लखै एक मय जिन नाम में सूरति पागी है।

हर दम छबि सागर में तन मय नहिं इच्छा कोई रहती है।

प्रेमी सांचा ता में नहिं द्वैत न मन ते दीन भाव उर है।

पढ़ि सुनि गुनिये अपने हिरदय विश्वास बिना कछु होत न है।

होवै जेहि लायक जीव जभी दरजा वाको वैसा मिलिहै।१०।

हरि न्याय के सागर औ निर्भय ऐसा कोई नहि दूसर है।

श्री स्वामी रामानन्द कि जय कहैं शेन भक्त मुद मंगल है।१२।


दोहा:-

भक्त भक्त सब जन कहैं, भक्त होव बड़ा काम।

श्री गुरु सेवा जो करैं, प्रेम से आठौं याम।१।

छूट जाय तन मन कलुष, ह्वै जावै निष्काम।

राम नाम की धुनि खुलै, सन्मुख छबि सिय राम।२।

शेन भक्त सो धन्य है, ता को करूँ प्रणाम।

दरशन ते पातक हरैं, जिन पायो हरि नाम।३।