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११० ॥ श्री हुलसी माता जी ॥

जारी........

अद्भुत छवि कन्हैया।

सुरमुनि सब नभ में छाय देखत यह चरित भाय नाचत फन पर कन्हाय

नुपुर पग बजैया।

वंशी धुनि सो बजाय बाजत सब गे लोभाय अहि को परिवार आय

चरनन परि जैया।

काली से कहैं श्याम कमल एक कोटि काम लै कर संघ चलौ ग्राम

छोड़ैं तब भैया।१३०।

सुनतै सब दौरि जांय कोटि कमल देंय लाय अहि पर हरि लें लदाय

बोलें सुखदैया।

धीरज सब धरो भाय अब हीं हम दें घुमाय गृह में कमलन धराय

देर नहि लगैया।

इनको हम अभय कीन ए तो हैं बड़े दीन शिर की लखि चरण चीन्ह

गरुड़ नहि बोलैया।

काली तब चले धाय आये तट यमुना भाय सोहैं फन पर कन्हाय

निरखैं नर लोगैया।

नभ से बाणी सुनाय जय जय त्रिभुवन के राय फूलन सुर झरी लाय

दुंदभी बजैया।१३५।

आज्ञा हरि फेरि दीन चलि भे काली प्रवीन आसन प्रभु द्वार लीन

उतरे यदुरैया।

डोरी फन से निकारि लेवैं तहं पर मुरारि देवैं फन फूंक मारि

पूरै चट घवेया।

वृज के सब वृद्ध बाल फूलन लीन्हेउ उतार बोले तब फिर मुरारि

दूध पिओ भैया।

कीन्हेउ तुम बड़ा काम लेहैं जग तुमरो नाम दुपहर औ सुबह शाम

मिलिहैं हम सदैया।

लावैं हरि दूध धाय बूरा औ घृत मिलाय बेला में धरैं

पाय लीजै मम भैया।१४०।

काली तब कहै नाथ दीनन के दीना नाथ कीन्हों मम कुल सनाथ

जूठनि हम पवैया।

बेला कर में उठाय लेवैं हरि नेक पाय देवैं तब कालि पाय

जय जय धुनि करैया।

हरि की लीला अनूप प्रगट्यौ तहं नर स्वरूप देखत सब चकित रूप

उर में हरि लगैया।

चरनन में लपटि गयो तन मन को कलुष गयो तुरतै अदृष्ट भयो

शक्ती हरि देवैया।

पहुच्यों जब जाय धाम निरखैं सब सर्प बाम वोलैं जय श्याम श्याम

सब के उर बसैया।१४५।

धीमर बहु हरि बोलाय देवैं पुष्पन लदाय बहिंगा लै चलैं धाय

तन मन हर्षैया।

पहुँचै जब कंश द्वार बहिंगा धरि दें उतारि बोलैं तब सब कहार

फूल लेव रैया।

सुनिके यह हा हा कार आवैं तब कंश द्वार निरखत हिय जांय हार

बोलि नहिं सकैया।

द्वारे पर फूल नाय बहिंगा को कांख लाय होवैं सब अंतराय

पता नहि लगैया।

जान्यौं सब कंश हाल प्रगटे त्रिभुवन भुवाल आयो अब मोर काल

जैहौं हरि पुरैया।१५०।

कमलन का सुभग टाल निरखत राजा निहाल फेरी करि पांच हाल

धरनि परयौ धैया।

बैठ्यो फिर कंस राय चाह्यौ देखै उठाय फुलवा सबगे बिलाय

मन में पछितैया।

जारी........