१३० ॥ श्री लैनिन जी ॥
शेर:-
जाल में एक मीन पकड़ी वह तड़फड़ाने लगी।
रहम दिल में आ गया पानी में छोड़ा वह भगी।
जाल को फेंका उसी दिन से लगे परस्वार्थ में।
जुट गये तन मन से मानो लै कलेजा हाथ में।
जो कुछ बना हमने किया आखिर गये हरि धाम को।५।
आनन्द वहँ पर है बड़ा मानो बचन नर बाम को।
जीव रक्षा के बराबर धर्म और न जानिये।
लैनिन कहैं इनको हमेंशा ख्याल करिके मानिये।