१५८ ॥ श्री देवहूती जी ॥
जारी........
बृज बासिन के भाग्य से हम सब नित नैनन फल पैया।
नर देही को लाहो लीन्हो इन सब वृज में ऐया।
इनकी क्या कोइ करै बराबरि चरनन रज न होवैया।५०।
इनके दर्शन ते अघ नाशैं प्रेम में पगे सदैया।
झांकी युगुल हृदय में सबके औ सन्मुख चमकैया।
नाम आप का सुनै अखण्डित आनन्द उर न समैया।
शर्म भर्म का काम रहा नहिं आप में आप देखैया।
अगम अपार आप की लीला कौन सकै बतलैया।५५।
पल में परलय उत्पति पालन करि फिरि खींचि लेवैया।
निर्गुण सर्गुण रूप आपका आनन्द कन्द कन्हैया।
आप के चरन कमल के नुपुर हम सब चहत बनैया।
सदा संग में छम छम बाजैं और कछू न चहैया।
ऐसी कृपा करो करुणानिधि पूरण आश करैया।६०।
दोहा:-
कृष्ण खेल जे जन पढ़ैं सुनैं लेंय उर धारि।
देव हूती सांची कहैं तिनको मिलैं मुरारी।१।