१८८ ॥ श्री हिरण्य कश्यप जी ॥
चौपाई:-
हरि का भजन पुत्र मम कीन्हा। यकइस पीढ़िन को सुख दीन्हा॥
हरि मोको उठाय के भाई। घोटनन ऊपर लीन उठाई॥
उदर बिदारि शरीर छोड़ायो। तुरतै बैकुण्ठै पठवायो॥
ऐसे दीन दयाल कृपाला। भजै तो काह करै यम काला॥
नर हरि रूप धरयौ मम हेता। भक्तन के प्रभु सदा निकेता॥
जो कोई हरि से नेह लगाई। जियतै मुक्ति भक्ति को पाई।६।
दोहा:-
हिरणा कश्यप की बिनय सुनिये तन मन लाय।
निशि बासर हरि को भजौ, आवागमन नशाय॥