२०१ ॥ श्री शरभङ्ग जी ॥
चौपाईः- हर दम हरि के रंग जो राँचा। ता को भव की लगै न आँचा।१।
नर तन पायो सुन्दर ढाँचा। बिन हरि भजन जानिये काँचा।२।
हरि को भजै सूर सो सांचा। काल के गाल पै देय तमाचा।३।
कह शरभङ्ग भाल बिधि खाँचा। सो मिटि जाय सत्य मम बाचा।४।
चौपाईः- हर दम हरि के रंग जो राँचा। ता को भव की लगै न आँचा।१।
नर तन पायो सुन्दर ढाँचा। बिन हरि भजन जानिये काँचा।२।
हरि को भजै सूर सो सांचा। काल के गाल पै देय तमाचा।३।
कह शरभङ्ग भाल बिधि खाँचा। सो मिटि जाय सत्य मम बाचा।४।