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२३३ ॥ श्री निजामीदास जी ॥

जारी........

मुख से बोलि न पाते देखा। अवध जात मुनि राज को देखा।

दशरथ के ढिग पहुँचत देखा। दशरथ चरनन परते देखा।

मुनि को आशिष देते देखा। मुनि सिंहासन बैठत देखा।

नृप को पूजन करते देखा। फिरि सब कुँवर बुलाते देखा।

चरनन शिर धरवाते देखा। मुनि शिर पर कर फेरत देखा।४००।

हर्षि हर्षि तन हेरत देखा। राम लखन मुनि माँगत देखा।

नृप तन मन सकुचावत देखा। तब वशिष्ठ समुझावत देखा।

नृप तन मन हर्षावत देखा। राम लखन गृह जाते देखा।

मातन से मिलि आते देखा। धनुष औ बान उठाते देखा।

नृप के चरनन परते देखा। मुनि के संग फिरि चलते देखा।४१०।

बन समीप में जाते देखा। निरखि ताड़ुका आते देखा।

मुनि हरि को बतलाते देखा। हरि एक बाण चलाते देखा।

मस्तक शर लगि जाते देखा। दक्षिण मुख चित गिरते देखा।

गिरतै प्राण निकलते देखा। चढ़ि बिमान फिर जाते देखा।

जय जय कार मनाते देखा। होम करत सब मुनिन को देखा।४२०।

राम लखन दोउ रक्षक देखा। पच्छिम तरफ़ प्रभु को देखा।

पूरब तरफ़ लखन को देखा। दोनों भाई ठाढ़े देखा।

धनुष बाण कर साधे देखा। चौतरफ़ा औ ऊपर देखा।

चितवत राम लखन को देखा। मारीच तहाँ पर आते देखा।

असुर संग बहु लाते देखा। हरि शर थोथा मारत देखा।४३०।

चारि सौ कोस पर गिरते देखा। सागर पार परा तेहि देखा।

तन की सुधि बिसरातेहि देखा। अग्नि बाण हरि मारत देखा।

तन सुबाहु को जारत देखा। लखन कटक संघारत देखा।

सुर मुनि जयति पुकारत देखा। मुनि तब तन मन हर्षे देखा।

विद्या हरि को देते देखा। लागत क्षुदा प्यास नहि देखा।४४०।

बल प्रकाश तन बढ़ते देखा। कछुक दिवस तँह रहते देखा।

मुनिन पै दाया करते देखा। धर्म कथा मुनि कहते देखा।

दोउ भाइन को सुनते देखा। मुनि संग कुँवरन चलते देखा।

गौतम नारि पाषाण कि देखा। हरि चरनन रज परते देखा।

दिब्य रूप ह्वै जाते देखा। अस्तुति प्रभु की करते देखा।४५०।

चरनन में फिर परते देखा। चढ़ि बिमान फिर जाते देखा।

पति के लोक उतरते देखा। राम लखण संग मुनि बहु देखा।

जनक नगर में पहुँचत देखा। सुख से तहां ठहरते देखा।

जनक खबरि यह पाते देखा। दर्शन के हित आते देखा।

देख के रूप लुभाते देखा। मुनि के चरनन परते देखा।४६०।

मुनि सब हाल बताते देखा। स्वागत जनक करत अति देखा।

तन मन प्रेम भरत अति देखा। मुनि तब आज्ञा देते देखा।

राम लखन को चलते देखा। फुलवारी में पहुँचत देखा।

चमनन पर तंह टहलत देखा। माली लखि बहु आते देखा।

हरि तब बैन सुनाते देखा। कदली पत्र मंगाते देखा।४७०।

पोखर में धुलवाते देखा। दोना जुगल बनाते देखा।

लखन को एक थमाते देखा। कली करन से छूते देखा।

तुरतै कलिन को खिलते देखा। तूरि के दोनन धरते देखा।

माली लखि मुद भरते देखा। कर जोरे सब ठाढ़े देखा।

तन मन प्रेम में गाढ़े देखा। फुल बगिया की शोभा देखा।४८०।

फूल वृच्छ बहु रंग के देखा। भांति भांति के पच्छी देखा।

फुल बगिया मधि पोखर देखा। मीन कमठ दादुर बहु देखा।

करत किलोलैं जल में देखा। गिरिजा भवन मनोहर देखा।

बरनत बनै नहीं जस देखा। सिया भवन से आवत देखा।

जारी........