३१५ ॥ श्री हरि दास जी ॥
(२)
सदा सिया राम राधे श्याम लक्ष्मी बिष्णु को भजिये।
श्री सतगुरु के चरणो की रेणु लै दृगन में अँजिये।
ध्यान परकाश धुनि लय हो नाम के साथ तो मँजिये।
लखौ झाँकी सुघर बाँकी द्वैत तन मन से जब तजिये।
सूरति को शब्द पर धरि कै सत्य पद प्राप्त करि सजिये।५।
कीरतन सुर व मुनि करते संग में प्रेम करि गजिये।
दीनता शान्ति माता की गोद में बैठि पय पिजिये।
कहैं हरि दास तब प्यारे पुत्र पितु मातु के भजिये।८।