४०६ ॥ श्री गुलाब सिंह ॥f
चौपाई:-
तन में क्रोध आय जब जावै। अनुचित उचित न कछु सोहावै।१।
नारि पुरुष बालक बहु मारा। तब नैपाल की ओर सिधारा।२।
संतन की किरपा भइ भाई। नाम कि बिधि मोहिं दीन्ह बताई।३।
दोहा:-
गुलाब सिंह कहैं तन तजेन पहुँचेन हरि पुर जाय।
ऐसे संत दयाल हैं सत्य कहौं हर्षाय॥