४१० ॥ श्री चरणदास जी ॥
दोहा:-
सोऽहं अजपा जाप है जपै जो प्रेम लगाय।
स्वाँसा से निकसत सदा गुनिये तो मन लाय।१।
चरन दास कहैं जे जपैं ध्यान समाधी होय।
सुर मुनि दर्शन देंय फिरि गर्भ वास नहि होय।२।
दोहा:-
सोऽहं अजपा जाप है जपै जो प्रेम लगाय।
स्वाँसा से निकसत सदा गुनिये तो मन लाय।१।
चरन दास कहैं जे जपैं ध्यान समाधी होय।
सुर मुनि दर्शन देंय फिरि गर्भ वास नहि होय।२।