४३५ ॥ श्री कुश जी ॥ चौपाई:- उमा शम्भु सम को जग दाता। चारों फल जिन हाथन ताता।१। कुश कह तन मन प्रेम लगाई। सुमिरै ताको सब बनि जाई।२।