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४४९ ॥ श्री मुस्तफ़ा हुसेन जी ॥


पद:-

यक दफ़ा मोहन छटा अपनी दिखाना चाहिये।

बसन भूषन क्रीट कुण्डल सज के आना चाहिये।

अलकैं लटकती हैं उजारो पर बनी जिमि नागिनी।

दोनो कर मुरली अधर पर धर बजाना चाहिये।

भाल में केशर तिलक औ पगन में नूपुर पहिन।५।

झुकि झूमि करके श्याम सुन्दर बैठि जाना चाहिये।

रूप अनुपम आपके पर काम रति बहु लाजते।

तिरछी निगह करके प्रभु फिर मुस्किराना चाहिये।

मुस्तफ़ा तन मन से करता है अरज़ यह राति दिन।

मुझ दीन पर करके रहेम उर में लगाना चाहिये।१०।