४५३ ॥ श्री जग रानी माई जी ॥
पद:-
सिय राम की अद्भुत छटा सन्मुख में जिसके छा गई।१।
धुनि ध्यान लय परकाश मुक्ती भक्ति जियतै पा गई।२।
सतगुरु मिला सांचा जिसे हर्षा गई बतला गई।३।
कहती है जगरानी छोड़ी तन पास हरि के धा गई।४।
पद:-
सिय राम की अद्भुत छटा सन्मुख में जिसके छा गई।१।
धुनि ध्यान लय परकाश मुक्ती भक्ति जियतै पा गई।२।
सतगुरु मिला सांचा जिसे हर्षा गई बतला गई।३।
कहती है जगरानी छोड़ी तन पास हरि के धा गई।४।