४९६ ॥ श्री कलूट शाह जी ॥
पद:-
गोता लगाना सीख लो सुखमन में परिके यार तुम।
फिर तो कोई मुशिकल नहीं लो सामने दिलदार तुम।
धुनी जारी रहै प्यारी सुनो फिरि निशिबार तुम।
परकाश ध्यान समाधि हो जियतै में हो भव पार तुम।
अनहद बजै सब दुख भजै सुरमुनि के हो परिवार तुम।५।
सुमिरन करो सतगुरु से लै कियो गर्भ में इकरार तुम।
चेतो अगर मानो नहीं तो हो गरद गुब्बार तुम।
कहता कलूट बिनय सुनो बनि जाव रंग सरकार तुम।८।