५०० ॥ श्री दयालदास जी ॥
पद:-
माथे पै मकुट श्रुति कुण्डल विशाल लाल,
अलकैं कुटिल सोहैं लीला मृदु गैंजनी।१।
कछनी कलित्रा कटि किंकिणीं बिचित्रा चित्रा,
अंग पै पितांबर फहरात रंग बैंजनीं।२।
डालगले बहियाँ प्रिया पीतम बिहार करैं,
ऐसो अनुराग भरि आई दोऊ दुजनी।३।
कहत दयाल दास मेरो मन हर लीन्हो,
मंद मंद बाजत गोविन्द पग पैंजनी।४।