॥ श्री स्वामी रामानन्द जी ॥
हरि हरिभक्तन का चरित,
है अति सुख की खानि।
रामानन्द यह कहत हैं,
लेव वचन मम मानि।१।
पढ़ै सुनै जो ग्रन्थ यह,
तन मन प्रेम लगाय।
हर्ष शोक की शान्ति हो,
भवसागर तरि जाय।२।
श्री गुरु महाराज की आरती
आरति गुरू महाराज की कीजै।
कोटिन कोटि पुण्य सुख लीजै॥
गावत सीता जी राधा जी।
जिनका जस लक्ष्मी जी उमा जी॥
मातु सरस्वति आसिस दीन्हीं।
परमहंस अस लेखनि की जै।१।
गावत नर नारी बालक गन।
राम कृष्ण बसते जिनके मन॥
सहस संत निज भाव लिखाये।
उन अदभुत कर कमलन की जै।२।
गावत प्रभु की लीला को नित।
भगत हिये हुलसे भक्तामृत।
अनहद नाद सुनत भीतर लौं।
तबहूँ मंगल कारक की जै।३।
मैं मूरख गुरू अंतरयामी।
दास सदा वह मेरे स्वामी।
त्राहिमाम शरणागत कीजै।
मोहि सदा चरनन मा लीजै।४।
परम पूज्य गुरुदेव
परमहंस राम मंगल दास जी महाराज के
अकिंचन शिष्य डा० सुधाकर अदीब द्वारा विरचित