१ ॥ श्री गिरिजा बाई जी ॥
पद:-
हाँ हाँ रे मोहिं भावै सँवलिया हाँ।
माथे केशर तिलक कुण्डल क्रीट चमक हँसि मारै नजरिया हाँ।
बादल की कड़क चपला की लपक निज सुरति सँभरिया हाँ।
परती न पलक जाकी मलक फलक चाहै सब नर गोरिया हाँ।
कैसी काली अलक रही गालों लटक सब के घट बसिया हाँ।५।
प्यारे की लचकि नूपुर की छमक अधर धारे मुरलिया हाँ।
चढ़ी नाम कि झक भागी तन मन कि शक छूटी भव की डगरिया हाँ।
गिरिजा ह्वै गई गरक नहिं सकती टरक पड़ी प्रेम फँसरिया हाँ।८।
दोहा:-
शब्द में सूरति जब पगै, मूरति सन्मुख होय।
ध्यान प्रकाश समाधि हो, द्वैत जाय सब खोय।
सुर मुनि शक्तिन दरश हों, नित प्रति आवैं जांय।
गिरिजा कह जो चरित हों, बरनत नहीं सेराँय।१२।