३ ॥ श्री शेश सिंह जी ॥
पद:-
मन जी तुम्हारे मैं चरन गहौं बार बार।
शान्ति ह्वै बैठो मोह संसय भगाऊँ मैं॥
ह्वै कर वजीर मेरे रहत बे पीर काहे दया करि संघ चलो
सतगुरु पाऊँ मैं।
जप बिधि जानि लेंय संघ मिलि चित्त देंय ध्यान धुनि नूर पाय
शून्य में समाऊँ मैं।
सुर मुनि देंय दर्श तन करैं स्पर्श सिया राम छटा छवि
सन्मुख छाऊँ मैं।
जब तक जग रहौं हरि ही को जस कहौं आवै जौन पास जन
प्रेम में पगाऊँ मैं।५।
ग्राम ग्राम धाय धाय नर नारिन पास जाय नाम विधि बतलाय
जियति लखाऊँ मैं।
कलि माहि सुःख होय द्वैत सब जाय खोय अन्त तन छोड़ि
सीधे हरि पुर जाऊँ मैं।
शेश सिंह बैन कहैं यही हम कीन चहैं हठ योग त्यागि
अब राज पर आऊँ मैं।८।