५३ ॥ श्री हजरत जी ॥
पद:-
मुरशिद जिसे बताई तन मन औ प्रेम लाई।
सूरति शबद लगाई उसकी हुई समाई।
धुनि ध्यान नूर पाई लय में पहुँचगा भाई।
सुर मुनि के संग खेलाई करि हैं औ मुसकराई।
षट चक्र भेद जाई सातों कमल फुलाई।५।
कुण्डलनी को जगाई सब लोक घूम आई।
घट में बजै बधाई सुनि हैं बरन न पाई।
सिय राम आनन्द दाई सन्मुख रहैं सदाई।
पट्टा गरभ में आई उसने था जो लिखाई।
उसकी किया अदाई छूटी गर्भ झुलाई।१०।
अगिनित जनम कमाई सो निज को चीन्ह पाई।
जिसने किया चलाई सब दुख हरा भगाई।
जिसने किया दुराई वह काटे चक्कर जाई।
जिसने न पग हटाई उसको जियति लखाई।
बनि जाव दीन भाई ले लो बड़ी बड़ाई।
हजरत कहैं सुनाई मानो तो हो रिहाई।१६।