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११३ ॥ श्री दौदा साह जी ॥


पद:-

जग में आय किह्यौ का सौदा।

मन मतंग काबू नहिं किन्हेव घूमत जो वे हौदा॥

पाय वे सार यहां खुब बोयो लगिहैं बड़े बड़े घौदा।

पर उपकार कि बात न जानेव तुम से नीक हैं भौंदा।

अन्त समै जम दण्डन मारैं सब तन परि है लौदा।

हरि सुमिरन बिन कल पल भरि नहिं चेत करौ कहैं दौदा।५।


पद:-

मनका बनिगो जीव गुलाम। या से भई बात बेकाम॥

ऐसा को है नमक हराम। नौकर को सब सौंपै दाम॥

यहि कारन ते भा बदनाम। हरि की ओर से ह्वै गो खाम॥

दौदा कहैं वृथा भा चाम। जावै अन्त पकड़ि जम धाम॥

मन तन असुरन की नहिं लागु। सब है यारों जीव की लागु।१०।

सतगुरु से लै नाम को जागु। तब सब होवै अपनै सागु।

गर्भ कि कौल में क्यों नहि पागु। काहे बना बैठ है नागु।

जब तेरे लगि जैहै दागु। दौदा कहैं कौन विधि भागु।१६।


शेर:-

गाहे बगाहे क्या करै हर वक्त हरि की याद कर।

तुझको अगर कुछ सुख न हो तो मुझ से फिर फरियाद कर।१।

मैं तुझ में हूँ तू मुझ में है यह बात प्यारे ख्याल कर।

दौदा कहैं खुब ले कमा निज को तु माला माल कर।२।


पद:-

नर तन पाय नाम नहिं चीन्हे।

माया तिरगुन में तोहिं राखै ताहि लगावत सीने।

वाको पूत दूत एक मनुवाँ पाँच भूत संग लीन्हे।

पाँचौ पाँच जाति के डाकू निज निज कार्य प्रवीने।

तिनके संग फ़ौज रहै भारी एक ते एक नवीने।५।

चारों ओर ते घेरि फांसि तोहि निज कबजे में कीन्हें।

तन छूटत में जमन को सौंपैं बोर नर्क में दीन्हे।

दौदा कहैं बिना सतगुरु के यह फल जग में लीन्हे।८।


पद:-

राम नाम को जानि ले तोते।

यह तन जौन हेतु तू पाये तौन त्यागि क्यों सोते।

गर्भ कि कौल मखौल मानि कै खेत कबहुँ नहिं जोते।

मांगै पोत कहाँ से दे है नर्क में खेहै गोते।

नैनन हरि के दर्शन पाये द्वैत क माड़ा पोते।५।

श्रवनन ते हरि नाम सुने नहिं समुझे बिरथा खोते।

टें टें करत फिरे चोरन संग पाप बीज को बोते।

दौदा कह सतगुरु बिन आयू बीती कूड़ा ढोते।८।


पद:-

सतगुरु वचन पर ध्यान दे मन का कहा मति मानना।१।

तन को हलुक जल पान दे कोइ और नेम न ठानना।२।

बेकार वक्त न जान दे बातैं बहुत मति छानना।३।

दौदा तुझे यह ज्ञान दे एक नाम ताना तानना।४।


पद:-

तन मन जिसने कुरबान किया वह सब कुछ कर सकता बाबा।१।

धुनि ध्यान समाधि प्रकाश मिली हरि को सन्मुख लखता बाबा।२।

सब सुर मुनि संग खेलवार करैं वह नेक नहीं थकता बाबा।३।

दौदा कह हर दम मस्त रहै आपै श्रोता बकता बाबा।४।


पद:-

चेत करो सुनि कै नर नारी।

तुम से भूल भई बड़ि भारी।

जिनके पिता राम सर्वेश्वर औ सीता महतारी।

तिनको पकरि असुर लै जावैं डारैं नर्क मझारी।

गर्भ में कौल किहेव करि विनती सो जग आय बिसारी।५।

यह तन देवन को है दुर्लभ सो प्रभु साजि सँवारी।

सतगुरु करि घट के पट खोलौ तब हो जय जय कारी।

दौदा कहैं वचन मम मानो मिलै न ऐसी वारी।८।

जारी........