११४ ॥ श्री लाला हरदयाल जी ॥
पद:-
चलैं छम छम बजैं नूपुर मुरलिया कर में चमकावैं।
करै मुरशिद लखै हर दम सामने हरि छटा छावैं।
अजब सिंगार आनन्द निधि देव मुनि नहिं बरनि पावैं।
ध्यान धुनि नूर लै आपै और दूजा न कोइ आवै।
अलख भी है प्रगट भी है सब में भी सब से बिलगावै।५।
सुरति को शब्द पर धरि कै प्रेम में तन व मन तावै।
सोइ अमृत चखै यारों रंग एक तार चढ़ि जावै।
अंत तन तजि चलै हरि पुर फेरि जग में न चकरावै।८।