१३२ ॥ श्री लाला गङ्गा बक्स जी ॥
दोहा:-
मल से मल छूटै नहीं, वारि से घृत नहिं होय।
ऐसे हरि सुमिरन बिना, जीव मुक्त किमि होय॥
पद:-
बिना सुमिरन के सुख नहीं कोई पायँगे।
आने जाने के फन्द में चकरायँगे।
जम मारत घसीटतहि लै जायेंगे।
वहाँ काँटो के वृक्षों में लटकाँयगे।
फिर बेतों से चूतर पिटाये जाँयेगे।५।
तहाँ कलपौं बहुत दुःख भोगाये जायेंगे।
फेरि वहँ से यहाँ को पठाये जायेंगे।
स्वान सूकर औ गदहे बनाये जायँगे।
अभी सोचत न आखिर रुलाये जायँगे।
करै सतगुरु मजा ते उड़ाये जायँगे।१०।
ध्यान परकाश धुनि लै समाये जायँगे।
सारे पापौं को अपने जलाये जायँगे।
राम सीता को लखि लखि मुशक्याये जायँगे।
तन छूटै तो हरि पुर बिठाये जायँगे॥।
तब जग में कभी नहिं पठाये जायँगे।
कोइ मानै न मानै हम गाये जायँगे।१६।
शेर:-
बातैं करैं कि आसमा पृथ्वी निचोड़ लें।
हरि नाम लेने को कहो तो मुख को मोड़ लें।१।
ऐसे जहाँ में वसर हमने देखे बहुत हैं।
जे मुफ़्त ज़िन्दगी गँवाय लेत नरक हैं।२।