१४८ ॥ श्री मिन्ना जान जी ॥
पद:-
बूढ़े ह्वै गये ठसक नहिं छूटी।
तन में चमक रही नहिं नेकौं मन की तेहि पर लपक नहिं छूटी।
पर नारिन को लखि लखि पापी लार रहे हैं घूटी।
सधै न सपरै कारज कोई चाह रहत ले बूटी।
विषय कि आदत शरम भगाइसि नैनन ढोकिसि खूँटी।५।
सारी उमिरि इसी में गुजरी अन्त लिहिन यम लूटी।
मैथुन निद्रा दाना पानी सब योनिन में जूटी।
इन्द्री सब निज निज कारज हित मिली तिन्हैं रहे कूटी।
सतगुरु करि सुमिरै निशि वासर परै न पावै तूटी।
मिन्ना कहैं जियत सब तै हो भरम क भांडा फूटी।१०।