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२२६ ॥ श्री छंनगो धोबिन जी ॥


कजरी:-

गोरिया चलो चलैं ससुररिया बैठैं पिया के सँग हर्षाय।

पिया मिलन की चाह बढ़ी अब नैहर नहीं सुहाय।

सतगुरु ने रहिया बतलायो रहि रहि मन ललचाय।

शान्ति दीनता को गहि लेवै सूरति शब्द लगाय।

ठग बट पार न नेरे आवैं बैठैं सब खिसि आँय।५।

राग रागिनी सुर मुनि दर्शै अनहद सुनै बधाय।

ध्यान प्रकाश नाम धुनि लय हो सुधि बुधि जहाँ हेराय।

वहाँ से चेति चलैं प्रेमातुर महा प्रकाश देखाय।

ताके मध्य पिया अविनाशी श्याम रूप सुखदाय।

अगणित सन्त तहां पर राजैं सिंहासन चमकाय।१०।

हँसै न बोलैं नैन न डोलैं प्रतिमा सम दिखलाय।

पहुँचि जाव जस पिया के पास में उठि लें गोद उठाय।

चूमैं मुख फिरि हिये लगावैं बार बार दुलराय।

सिंहासन पर तब बैठारैं दिव्य सिंगार बनाय।

निज स्वरूप सम रूप देंय करि मौन बोलि नहिं जाय।

हर दम पास न नैहर आवैं यह ससुरारि कहाय।१६।


दोहा:-

अर्पन सतगुरु को करै, तन मन सो गृह पाय।

धन्य धन्य सो शिष्य है, सुर मुनि करैं बड़ाय।१।