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२६० ॥ श्री फुलवसिया माई जोशिन जी ॥


पद:-

नौबत हर दम रहे बजाय पाप की ढोल गले में डारे।

काम क्रोध मद लोभ मोह को नेकौ नहीं सँभारे।

तन मन कैसे काबू होवै अन्त नर्क जाँय पारे।

महा कष्ट तहँ वरण सकै को शारद फणपति हारे।

सतगुरु करै भजन विधि जानै तब हो जीव सुखारे।५।

ध्यान प्रकाश समाधि नाम धुनि सन्मुख रूप निहारे।

सुर मुनि सँग भनै हरि को यश बोलै जय जय कारे।

अनहद बाजन की धुनि सुनि सुनि मस्त होंय मन मारे।

सूरति शब्द की जाप है अजपा जानत कोइ कोइ प्यारे।

अगणित जन्म कि होय कमाई सो प्राणी उर धारे।१०।

फुलवसिया कह धीरे धीरे होत कार्य्य हैं सारे।

शान्ति दीनता को गहि लीजै जो कुल रीति तुम्हारे।१२।