२६४ ॥ श्री खोजनी माई तर्पतिहारिन जी ॥
पद:-
विनय श्री मातु माया से करौ मुझ को नचाना ना।
भजन हित है मिला नर तन दया हो अब रुलाना ना।
जगत के दुख औ सुख में अब कभी नेकौ बझाना ना।
सदा हरिनाम सुमिरन में रहूँ पीछे हटाना ना।
दीनता शान्ति आने दो द्वैत परदा लगाना ना।५।
कभी पर नाजिनी के संग मेरे दिल को फंसाना ना।
सदा निर्वैर औ निर्भय मुझे बागी बनाना ना।
वसन भोजन भरे को धन और ज्यादा दिलाना ना।
ध्यान धुनि नूर लय पाऊँ मन को तन से भगाना ना।
लखूँ सिय राम को सन्मुख शीश नीचे झुकाना ना।१०।
देव मुनि संग हरि यश को सुनौ भाखौ हँसाना ना।
कमल औ चक्र कुण्डलिनी जगै गड़ बड़ मचाना ना।
सदा अनहद कि धुनि प्यारी सुनौ भृकुटी फिराना ना।
लोक सब घूमि लखि आऊँ रास्ते में गिराना ना।
रहै जब तक जगत में तन विमुख गुरु से कराना ना।
अन्त तन त्यागि लूँ हरि पुर गर्भ में फिर झुलाना ना।१६।