२८३ ॥ श्री कसिया वेलवार जी ॥
पद:-
सिया राघौ सदा सन्मुख सोहैं।१।
सतगुरु से सुमिरन विधि जानिके सूरति शब्द में जब पोहै।२।
ध्यान धुनी परकाश दशा लय अनहद बाजा मन मोहै।३।
कसिया कहै कसर सब छूटै सुर मुनि दर्शैं मुख जोहै।४।
पद:-
सिया राघौ सदा सन्मुख सोहैं।१।
सतगुरु से सुमिरन विधि जानिके सूरति शब्द में जब पोहै।२।
ध्यान धुनी परकाश दशा लय अनहद बाजा मन मोहै।३।
कसिया कहै कसर सब छूटै सुर मुनि दर्शैं मुख जोहै।४।