२९१ ॥ श्री मेंहदी हुसुन जी ॥
पद:-
विनय कलिराज से करिये आप चाहैं तो तरि जाऊँ।
विकट दल आप का जग में रोक लीजै तो बिलगाऊँ।
देव मुनि आय दें दरशन विहँसि नित संग बतलाऊँ।
नागिनी को जगा करके घूम सब लोक लखि आऊँ।
चक्र षट बेधि चालू कर कमल सातों को उलटाऊँ।५।
सुनौं अनहद की धुनि प्यारी विमल श्री हरि क यश गाऊँ।
करूँ सतगुरु मिलै मारग पास ही अपना घर पाऊँ।७।