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३०० ॥ श्री बैरम खाँ मोची जी ॥


पद:-

चरन चुम्बन में सतगुरु के कसर जिसने नहीं रक्खा।

वही कौसर के प्याले को दीनता शान्ति से चक्खा।

समाधी नूर धुनि औ ध्यान सन्मुख रूप है लक्खा।

देव मुनि आय दें दर्शन विहँसि नित उनसे है भक्खा।

जगी नागिनि सुधे चक्कर खिले सब कमल के पक्खा।

सदा निर्वैर औ निर्भय कभी नेकौ नहीं मक्खा।६।