३०५ ॥ श्री बुलाकी लाल वैश्य जी ॥
पद:-
नेवाले पाप के रहे उड़ाय किया कैसा गंदा मन है।
हर दम अनुभव अधरम ही का जोरि रहे धन है।
उन से भले श्वान खर शूकर पक्षिन के तन है।
अपने तन से यहां किसी को सुख न दियो पन है।
अन्त छोड़ि तन वही जीव चलि होते यम गन हैं।५।
वहाँ भला वै कैसे मानो यमपुर के जन हैं।
कहैं बुलाकी लाल नाम गहि चढ़े जे नहिं रन हैं।
वे आने जाने के वस्त्र में रहे सदा छन हैं।७।