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३२४ ॥ श्री कनी जान जी ॥


दोहा:-

मुरशिद करि हरि को भजो, छोड़ो शान औ मान।

दमकनिया भव की मिटै, खुलै नाम की तान।

ध्यान प्रकाश समाधि हो, सन्मुख छावै रूप।

सुर मुनि सब के दर्श हों, अनहद सुनो अनूप।

अन्त छोड़ि तन जाव चलि, अचल धाम हो बास।५।

गर्भ हिंडोला मिटै तब, जब या विधि हो पास।

कनी कहैं अब तान लो, ताना बहिनों भाय।

नाही तो पछितावगे, आयू बीती जाय।८।


पद:-

मुरशिद करो हर दम सुनो घट में कीरतन हो रहा।

अनमोल नर तन है मिला, काहे वृथा में खो रहा।

साज अनहद बाजते संघ राग रागिनि नाचते।

सुर मुनि सुनैं लखि गाजते तू मोह नींद में सो रहा।

यह ध्यान ही की बात है सो जान तेरे पास है।५।

जग की तजे नहि आस है, या ही से कूड़ा ढो रहा।

धुनि नाम की तू जान ले, तन मन से ताना तान ले।

परकाश लय सुख खान ले जो पाप ताप को धो रहा।

सन्मुख में राधे श्याम हों सुर मुनि मिलैं लय नाम हो।

तब सब तुम्हारा काम हो हर वक्त यहं पर को रहा।१०।

यह मार्ग सूरति शब्द का, गहि कर चलो निज हद्द का।

फिरि रहै बाकी मद्द का सारे असुर यह नो रहा।

तन छोड़ि प्रभु के पास में बैठो सिंहासन खास में।

आओ न फिर भव फांस में कहती कनी क्यों रो रहा।१४।


दोहा:-

कना पेट भर नहीं मिलै, सत्य कहौं मैं भाय।

दुर्बलता ऐसी भई मारग चला न जाय।

माटी पोतन के लिये, खोदन गइ जहँ खान।

ता में एक कनी मिली, नैनन चमक समान।

घर लाई सब ने लख्यौ, गई जौहरी पास।

पारिख ह्वै बिक्री भई, दुख भयो सब नास।

स्वामी रामानन्द जी, मोहिं लीन अपनाय।

राम नाम को दीन दे, द्वैत गयो विलगाय।

कनी जान कहने लगे, तब से सब मम नाम।

शिव गिरिजा को वास जहँ श्री काशी शुभधाम।५।