३३० ॥ श्री अद्वैता नन्द जी ॥
पद:-
रेफ़ बिन्दु की जाप को, सतगुरु से ले जान।
धुनी ध्यान परकाश लय, मिलै सर्व सुख खानि।
रूप सदा सन्मुख लखै, अन्तराय नहिं होंय।
निर्भय औ निर्वैर हो, छूटि जाय तब दोय।
अनहद घट में हर समय, बजै सुनै क्या तान।५।
सुर मुनि आवैं मिलन को, करैं बड़ा सन्मान।
पढ़ सुन लिख सब दीन धरि, कीन्ह नहीं अभ्यास।
या से अन्त समय मिलो, श्री विष्णु पुर वास।
कपिल देव आये तहां, भेद दीन विलगाय।
अब तो वह तन है नहीं, केहि विधि करौं उपाय।१०।
परस्वारथ जो कछु किहेन, सो सब जग विख्यात।
कर्म बिना त्यागे कोई, अचल धाम नहिं जात।
कहैं अद्वैता नन्द जब, भोग पूर ह्वै जांय।
तब जग में अवतरित ह्वै, भजन करौ मन लाय।१४।