३४० ॥ श्री गुरु गोविन्द सिंह जी ॥ दोहा:- गोविन्द सिंह गोविन्द भजि, गो मन ले जो जीति।१। ध्यान धुनी परकाश लय, रूप से होवै प्रीति।२।